वक़्त की उस रेत में,
शायद हम भूल गए छोड़ने निशान,
सो, आज अपनी ही दुनिया में
भटक गए हैं हम इंसान।
अपनी ख़्वाहिश, अपनी सोच, अपने लक्ष्य से भटक गए हैं,
सच कहूँ तो आज हम सच से ही भटक गए हैं।
शत-प्रतिशत बेहतर था वो जो कल गया है,
क्योंकि आज तो वक़्त बदल गया है।
ज़लज़ला ज़ुल्म का आया है,
अत्याचार की आँधी आई है।
बेकाबू, बेलगाम
हो गए हैं कुछ हैवान।
वक़्त के साथ हम भी बदल गए हैं।
ज़्यादा-ज़्यादा के चक्कर में,
अपनी ज़िन्दगी ही हमने कर ली है कम।
पास से दूर जा, न जाने कौन से दूर को
पास ला रहे हैं हम।
गलती तो हमसे हुई है,
पर मानने को तैयार ही नहीं।
सच कहता हूँ,
शत-प्रतिशत बेहतर था वो जो कल गया है,
क्योंकि आज तो वक़्त बदल गया है।
कभी सुबह-शाम आसमान लाल होता था,
आज ज़मीन लाल होती है।
कभी सत्यमेव जयते होता था,
आज झूठ की जय-जयकार पूरे साल होती है।
कभी इंसान दिल की सुनता था,
आज तो सुनता ही नहीं।
कभी इंसान ख़्वाब का पीछा करता था,
आज तो सपने बुनता ही नहीं।
शायद, ख़ुदा की बनाई वो दुनिया
हमें नहीं आई थी पसंद।
सो, अपनी बनाई दुनिया में हमने
ख़ुद को कर लिया बंद।
गलती तो हमसे हुई है,
पर माफी माँगने को तैयार ही नहीं।
सच कहता हूँ,
शत-प्रतिशत बेहतर था वो जो कल गया है,
क्योंकि आज तो वक़्त बदल गया है।
घड़ी वही है, काँटे वही है,
सुइयाँ उसी तरह घूम रही।
पर सच कहता हूँ,
वक़्त बदल गया है।
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