अतिथि तुम कब जाओगे ?
कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे ?
तुम्हारे आए हुए एक सप्ताह होने जा रहा है,
माना कि यह घर तुम्हे बहुत भा रहा है,
दूसरों का घर सबको पसंद आता है,
पर वह दूसरे दिन वापस चला जाता है।
पर तुम हो कि मानते नहीं,
क्या तुम यह बात जानते नहीं,
'हाथ फैलाया हुआ इंसान बुरा लगता है,
एक रात गुज़ार ले, तो मेहमान बुरा लगता है।'
अतिथि तुम कब जाओगे ?
कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे ?
रोज़ तुम्हें दिखाकर बदल रहा हूँ तारीखें,
चूँकि तुम्हारे एक-एक मीठे पल लग रहे हैं मुझे तीखे।
जिस दिन तुम आए थे, मैं तो हिल गया था,
फिर भी मुस्कुराते हुए तुमसे गले मिला था।
यह सोचकर हमने तुम्हे शानदार लंच और डिनर करवाया था,
कि तुमने अगले दिन का टिकट कटवाया था।
पर हमें क्या पता था कि तुम अपने 'स्वीट होम' नहीं जाओगे,
और हमारे घर में पूरा एक सप्ताह बीताओगे।
अतिथि तुम कब जाओगे ?
कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे ?
माना कि तुम देवता हो,
पर मैं भी तो हूँ इंसान,
मेरे भी तो है कुछ फ़रमान।
कभी-कभी मुझे यह लगता है,
कि 'गेट-आउट' भी एक शब्द है,
जो तुम्हे कहा जा सकता है।
क्यों नहीं करते तुम अपने बिस्तर को गोल,
और देते हमको यह बोल,
जा रहा हूँ मैं अपने घर,
अब और मेहमाननवाज़ी तू न कर।
अतिथि तुम कब जाओगे ?
कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे ?
Inspired from Sharad Joshi!
ReplyDeleteThis is derived from the sharad joshi's story "tum kab jaoge atithi".
ReplyDeleteAlready mentioned!
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