रिश्तों की कोई क़दर नहीं,
अपराध के बिन कोई गाँव या शहर नहीं।
क्रूरता से भरी पड़ी है दुनिया आज,
आज की दुनिया में इंसानियत क्या है!
पैसा है तो सबकुछ है,
पैसा नहीं तो कुछ भी नहीं।
पैसा ही तो हूनर है आज,
आज की दुनिया में क़ाबिलियत क्या है!
बचपन से ही बच्चों पर परिपक्वता का ज़ोर है,
दिलो-दिमाग में उनके आशाओं का शोर है।
भोलापन तो जैसे गुम होता जा रहा है आज,
आज की दुनिया में मासूमियत क्या है!
अंदर कुछ और बाहर कुछ,
आदमी भी मानो तरबूज़ हो गया है,
इसलिए रिश्तों का धागा भी अब लूज़ हो गया है।
हो गई है झूठी आत्मा भी आज,
आज की दुनिया में रूहानियत क्या है!
आज की दुनिया में इंसानियत क्या है!