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Saturday, January 30, 2016

आज की दुनिया

Today's World

रिश्तों की कोई क़दर नहीं,
अपराध के बिन कोई गाँव या शहर नहीं।
क्रूरता से भरी पड़ी है दुनिया आज,
आज की दुनिया में इंसानियत क्या है!

पैसा है तो सबकुछ है,
पैसा नहीं तो कुछ भी नहीं।
पैसा ही तो हूनर है आज,
आज की दुनिया में क़ाबिलियत क्या है!

बचपन से ही बच्चों पर परिपक्वता का ज़ोर है,
दिलो-दिमाग में उनके आशाओं का शोर है।
भोलापन तो जैसे गुम होता जा रहा है आज,
आज की दुनिया में मासूमियत क्या है!

अंदर कुछ और बाहर कुछ,
आदमी भी मानो तरबूज़ हो गया है,
इसलिए रिश्तों का धागा भी अब लूज़ हो गया है।
हो गई है झूठी आत्मा भी आज,
आज की दुनिया में रूहानियत क्या है!
आज की दुनिया में इंसानियत क्या है!

Monday, January 25, 2016

मजदूरी

Labour

जिस कूली ने तेरा सामान उठाया,
जिस मिस्त्री ने बनाया तेरा घर।
सोच क्या होता, क्या होता
न होता वो अगर।

भगवान ने ये कैसा अन्याय है किया,
कैसा उसने ये खेल है खेला।
जो कुर्सी पे बैठा वो बाॅस,
जिसने दिन भर पसीना बहाया वो चेला।

ख़ैर, अब कौन उठाए दुनिया का बोझ,
कौन खींचे भारी रिक्शा।
ये मजदूरी तो उनकी मजबूरी है,
जिन्हें नहीं मिली अच्छी शिक्षा।

अब कौन करे ऐसा काम, कौन सहे अपमान,
पर अब हमें निकालना होगा इस समस्या का समाधान।
तभी कम होगा मजदूरों का ग़म,
जब इज़्ज़त की निगाहों से उन्हें देखेंगे हम।

Sunday, January 24, 2016

आज का गाँधी

Gandhi

उसने हमें कराया था आज़ाद,
लगभग दो सौ वर्ष बाद।
आज भी जब आती है उनकी याद,
तो याद आती है उनकी मुराद।
'आज के इंडिया को भारत बनाना है,
 उसे अपना गौरव वापस दिलाना है।'
उनमें तो ख़ैर इतनी शान थी,
पर क्या कोई आज बन पाएगा 'गाँधी'।

हो रहा है अत्याचार, हो रहा है भ्रष्टाचार,
क्यों नहीं रोक पा रही इसे हमारी सरकार।
क्यों नहीं रोक पाती यह इस भेद-भाव को,
क्यों नहीं रोक पाती यह इस दुखों के नाव को।
माँग है यह भारत माता की
पर समझ यह नहीं आता कि
उनमें तो ख़ैर इतनी शान थी,
पर क्या कोई आज बन पाएगा 'गाँधी'।

क्या कोई है जो सह सके इतना कष्ट,
क्या कोई है इतना बड़ा वतन-परस्त।
जिसके रगों में दौड़ता हो खून वतन का,
जो तैयार हो देने को बलिदान तन-मन का।
हमारा मुल्क आज यह हमसे माँग रहा है,
उसने तुमसे भी आज यह कहा है,
उनमें तो ख़ैर इतनी शान थी,
पर क्या तुम बन पाओगे आज के 'गाँधी'।

आज़ादी की नीलामी

Colors of Indian Heritage
भारत को अब हम गुलाम नहीं होने देंगे,
चाहे कुछ भी हो जाए,
अपनी आज़ादी को नीलाम नहीं होने देंगे।

सुख के दिनों में शाम नहीं होने देंगे,
अपने इरादों को नाकाम नहीं होने देंगे,
जब तक हम जीत न जाए
आराम नहीं होने देंगे।
आराम नहीं होने देंगे।

बुराइयों का आगाज़ नहीं होने देंगे,
अनेकता का अहसास नहीं होने देंगे,
मिटा देंगे सारे भेद-भाव को
कहीं भी इम्तियाज़ नहीं होने देंगे।
कहीं भी इम्तियाज़ नहीं होने देंगे।

अपने हूनर को बेकार नहीं होने देंगे,
देश में ज़ुल्म या अत्याचार नहीं होने देंगे,
बस बहुत हो गया
अब और इंतज़ार नहीं होने देंगे।
अब और इंतज़ार नहीं होने देंगे।


भारत को अब हम गुलाम नहीं होने देंगे,
चाहे कुछ भी हो जाए,
अपनी आज़ादी को नीलाम नहीं होने देंगे।

Tuesday, January 5, 2016

अतिथि तुम कब जाओगे

Please Go Now

अतिथि तुम कब जाओगे ?
कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे ?

तुम्हारे आए हुए एक सप्ताह होने जा रहा है,
माना कि यह घर तुम्हे बहुत भा रहा है,
दूसरों का घर सबको पसंद आता है,
पर वह दूसरे दिन वापस चला जाता है।
पर तुम हो कि मानते नहीं,
क्या तुम यह बात जानते नहीं,
'हाथ फैलाया हुआ इंसान बुरा लगता है,
एक रात गुज़ार ले, तो मेहमान बुरा लगता है।'

अतिथि तुम कब जाओगे ?
कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे ?

रोज़ तुम्हें दिखाकर बदल रहा हूँ तारीखें,
चूँकि तुम्हारे एक-एक मीठे पल लग रहे हैं मुझे तीखे।
जिस दिन तुम आए थे, मैं तो हिल गया था,
फिर भी मुस्कुराते हुए तुमसे गले मिला था।
यह सोचकर हमने तुम्हे शानदार लंच और डिनर करवाया था,
कि तुमने अगले दिन का टिकट कटवाया था।
पर हमें क्या पता था कि तुम अपने 'स्वीट होम' नहीं जाओगे,
और हमारे घर में पूरा एक सप्ताह बीताओगे।

अतिथि तुम कब जाओगे ?
कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे ?

माना कि तुम देवता हो,
पर मैं भी तो हूँ इंसान,
मेरे भी तो है कुछ फ़रमान।
कभी-कभी मुझे यह लगता है,
कि 'गेट-आउट' भी एक शब्द है,
जो तुम्हे कहा जा सकता है।
क्यों नहीं करते तुम अपने बिस्तर को गोल,
और देते हमको यह बोल,
जा रहा हूँ मैं अपने घर,
अब और मेहमाननवाज़ी तू न कर।

अतिथि तुम कब जाओगे ?
कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे ?

Monday, January 4, 2016

जीवन पथ-प्रदर्शक

Choosing the path

मुसलसल मसलें आते रहेंगे,
तुझे धैर्य रखना होगा।
समझ ले, तेरी किस्मत में नहीं कुछ है लिखा,
तुझे मशक्कत करना होगा।

याद रख, ये जंग-ए-ज़िन्दगी है,
जद्दोजहद तो करना ही पड़ेगा।
कामयाबी मिले न मिले,
पूरा प्रयास तो करना ही पड़ेगा।

माना कि मंज़िल ऊँची है तेरी,
तुझे सीढ़ियाँ हज़ारों चढ़ना है।
पर तक़दीर के कलम से,
तुझे इतिहास भी तो गढ़ना है।

तेरे पीछे समंदर यादों का,
आगे मुसीबतों का पहाड़।
छोड़ सारी चिंताओं को,
शेर-दिल होकर तू दहाड़।

भूल न करना ये बातें भूलने की,
वरना किसी मोड़ पर तू छूट जाएगा।
कुचलकर तुझे बढ़ जाएँगे लोग आगे,
फिर न कभी तू दुबारा उठ पाएगा।

मुसलसल मसलें आते रहेंगे,
तुझे धैर्य रखना होगा।
समझ ले, तेरी किस्मत में नहीं कुछ है लिखा,
तुझे मशक्कत करना होगा।

तक़दीर


Lines of fate

'हथेलियों में देखता रहा किस्मत,
पर कभी कोई लकीर-ए-खुशी न दिखी।
उस कलम का मैं सिर कलम कर दूँ,
जिसने मेरी तक़दीर लिखी।'

जब हाथों की लकीरों में ज़िन्दगी तू ढूँढता है,
तो ख़ुद की किस्मत देख ऐसा क्यों सोचता है।
जब तेरे हाथ में तेरी किस्मत है,
तो तक़दीर को तू क्यों कोसता है।

ख़्वाबों की मजलिस में क्यों बैठा है,
उम्मीदों के महफ़िल में क्यों ठहरा है।
समझ ले, तेरी किस्मत में नहीं कुछ है लिखा,
तू उठ और उठ कर कुछ कर के दिखा।

उठ और उठा कलम तक़दीर की,
पलट किस्मत के पन्ने, मिलेगा एक खाली पन्ना।
लिख डाल खुद की तक़दीर उसमें,
पूरी कर अपनी बरसों की तमन्ना।

Sunday, January 3, 2016

गणतंत्र रो रहा है

Happy Republic Day

देखो भारत, देखो भारतवासियों,
तुम्हारा गणतंत्र रो रहा है,
तुम्हारा गणतंत्र रो रहा है।
न जाने क्या ये सोच रहा है,
बताने में क्यों कर संकोच रहा है।

आख़िर क्यों इसके आँखों से आँसू गिर रहे है,
आख़िर क्यों दुख-दर्द इसके दामन में घूम-फिर रहे है।
ये गणतंत्र, जो पूरे भारत में ख़ुशी के बीज बो रहा है,
वो आज ख़ुद क्यों रो रहा है,
ख़ुद क्यों रो रहा है।

सच कहूँ, तो गणतंत्र आज से नहीं,
67 सालों से रो रहा है।
लाखों कानूनों के बावजूद,
ज़ुल्म और अत्याचार जो हो रहा है।


देखो भारत, देखो भारतवासियों,
तुम्हारा गणतंत्र रो रहा है,
तुम्हारा गणतंत्र रो रहा है।
बहलाओ इसे, फुसलाओ इसे,
किसी तरह तो समझाओ इसे,
क्योंकि कहीं ये गणतंत्र रूठ गया,
तो समझो पूरा भारत लूट गया।

Saturday, January 2, 2016

नया साल

Happy New Year


आज सुबह जब नींद खुली,
पलकें जब अलग हुईं।
तो नज़ारा कुछ बदला बदला-सा था।
साँसों से जब बातें की,
तो इशारा कुछ बदला बदला-सा था।

बच्चों में थी नई चाह,
लोगों में था नया उत्साह।
मुसाफ़िर सुख में ऐसे डूबे थे,
मानो मिल गई हो नई राह।

मैं कमरे में था बंद,
हवाएँ चलती मंद-मंद,
मेरे कानों में कुछ फ़ुसफ़ुसा रही थी,
पर उनकी बात मुझे नहीं समझ आ रही थी।

मैं बेचारा था थोड़ा सहमा, थोड़ा घबराया,
तभी मोबाईल में एक दोस्त का मैसेज आया।
'हर्ष नया है, उत्कर्ष नया है,
अर्श नया है, फ़र्श नया है।
अब तो तुम नए हो जाअो यार,
अब तो भाई ये वर्ष नया है।'
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