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Tuesday, June 29, 2021

कैदखाना और मैं

मेरे पिंजरे को डर है कि मेरी आज़ादी के बाद
सुलगती आग में उसकी बर्बादी के बाद
कुछ बुरा होगा

बुरा तो होगा
इस घर का टूट जाना
सारे सामानों का लूट जाना
बुरा तो होगा
रौशनी का फूट जाना
रिहा हो जाना, छूट जाना
बुरा तो होगा

पर अरमां मेरे कुछ और है
दिल में सिर्फ आज़ादी का शोर है

वो तो हवाओं ने हाथों को रोककर रखा है
परछाई ज़मीन से बांधकर रखती है
वर्ना ये इंतज़ार मुझे क़ुबूल नहीं है
मैंने ख्वाबों में ये दीवारें फांद रखी है

एक दिन यकीनन
ये सारी ख्वाहिशें निकल जाएंगी
सारी ज़ंजीरें पिघल जाएंगी
उड़ूंगा मैं फिर
आज़ाद
बेतार
सितारों से आगे
क्षितिज के पार

इसीलिए तो
इस कैदखाने की हर इक दीवार से
मैं ये हर इक रोज़ कहता हूं
कि तुम मैं नहीं हूं
वक़्त की तख्ती से जो मिट जाए
सिमट जाए
वो शय नहीं हूं

मैं सिफर हूं, एकांत भी हूं
एक शोर हूं जो शांत भी हूं
मैं हूं ज़ाहिद, मुहाजिर भी हूं
मंज़िल भी मैं मुसाफ़िर भी हूं

छुपाते नहीं छुपता


छुपाते नहीं छुपता है प्यार हो चुका है
ये गुरूर नहीं है इज़हार हो चुका है

मैंने भी सोचा है कुछ नहीं बोलूंगा
दिल-ए-बेकरार से ये क़रार हो चुका है

रस्ता भी नहीं देती, आगे भी नहीं बढ़ती
ऐ ज़िंदगी, बहुत इंतज़ार हो चुका है

सालों बाद लौटा है अब वो बात नहीं
दिल अब जिस्म का किरायदार हो चुका है

मर्ग आज़ादी है ज़िन्दगी कैदखाना
इस बात पर थोड़ा सा ऐतबार हो चुका है

और फिर जब मौत आई मुझे यों लगा
ज़ाहिद ऐसा तो कई बार हो चुका है

Monday, June 28, 2021

क्या होता है


इश्क़ में सर होना, बेखबर होना
जुनून में तर होना, दर-बदर होना
क्या होता है

मोहब्बत के बाग़ों में शजर होना
रिफ़ाक़त के रस्तों का पत्थर होना
गुमानों की गुमशुदगी की खबर होना
फिर भी उम्मीद का ज़िन्दगी-भर होना
क्या होता है

रात का दिन भर होना
शराबों का बेअसर होना
ख्वाबों से बेखबर होना
बेसबब सब बेसबर होना
क्या होता है

रूह का जिस्म से बेघर होना
रात के अंधेरों को लेकर होना
शाम के उजालों से सहर होना
आज़ाद होना, अज़िय्यत-बर होना
क्या होता है

इश्क़ में सर होना, बेखबर होना
जुनून में तर होना, दर-बदर होना
क्या होता है

Thursday, June 24, 2021

नया सफ़र

उसी अलमारी में जिसमें
मैंने अपने डर को
छुपाकर रखा था
आज अपने ख़्वाबों को
सजाकर रखा है

रास्तों की पुकार से
मंज़िल की हुंकार से
सफर के करार से
दिल-ए-बेकरार से
चल पड़ा हूं

एक उम्मीद की मैली चादर है
एक शीशे का रक़्स खिलौना है
एक नाम भर की आज़ादी है
एक सूर्ख कांटों का बिछौना है

फिर गिरना तो मेरा हक हुआ ना
संभलना तो नाहक हुआ ना

क्यूं डरूं कि दरिया आग की हो कि पानी की
क्यूं डरूं कि कश्ती नूह की हो कि फोकानी की

क्या सतह पे मेरा अक्स आज नहीं दिखता
क्या किनारों पे मेरा नाम लिखा नहीं दिखता
नहीं दिखता इक भंवर का सैलाब बन जाना
या जुनून मेरे कदमों में छिपा नहीं दिखता

Friday, June 18, 2021

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़िर


कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़िर 
वो ख़्वाब भी लेकर आओ ना
जो कसक हो दिल में कैद कहीं
और मन को मेरे बहलाओ ना।

अंधेरों से की है दोस्ती
अब रौशनी से नहीं वास्ता,
तुम चांद सितारे ले जाकर
आसमान को समझाओ ना।

अफवाह उड़ी है कि दर्द को
इश्क़ कहने से दर्द नहीं होता,
तुम दर्द और इश्क़ में
फर्क क्या है बतलाओ ना।

आंखों के तालाबों में


आंखों के तालाबों में पहरे हो गए
मुखौटे सबके अबके चेहरे हो गए

इतनी रौशनी कि सब अंधे हो गए
इतना सन्नाटा कि सब बहरे हो गए

ऐसे तो बारिश मेरा घर जला देगी
तुम कह दोगे नज़ारे सुनहरे हो गए

मैंने कहा था छोड़ दो इसी हाल पर मुझे
तुमने मरहम लगाया घाव गहरे हो गए

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