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Monday, December 19, 2016

इंतज़ार

waiting
मैं ख़्वाबों की दुनिया से भटकता ख़्यालों की दुनिया तक आया,
पर ज़िन्दगी की जुस्तजू पर न कह पाया, न सह पाया।

कुछ क़द बढ़ा तो क़दम बढ़े,
ख़ुशी न बढ़ी पर ग़म बढ़े,
कुछ दूर चला तो पता चला
कि गिरती सीढ़ियों पर कैसे हम चढ़े।

कुछ आस थी, कुछ प्यास थी,
कुछ आह थी कुछ चाह थी,
कि यूँ तो मंज़िलों से भरा था मंज़र,
पर जिस पर हम चले वो राह थी।

सह गया सब काँटों को,
और ज़ंजीरों को मैं तोड़ आया,
पर कुछ दूर चला तो पता चला,
कि ख़ुद को मैं कहीं पीछे छोड़ आया।

जीत के जश्न में इस हार का इज़हार कर रहा हूँ,
मैं न जाने कब से अपना इंतज़ार कर रहा हूँ।

Friday, November 11, 2016

कह दूँ या सह लूँ

Silence

कुछ अल्फ़ाज़ों ने लिख दिए,
कुछ लफ़्ज़ कह गए।
पर शब्द जो दिल में थे,
सो दफ़्न ही रह गए।

सोचता हूँ कि क्यूँ आख़िर,
हर आह आवाज़ ढूँढती है।
चीख़ते तो तुम हो,
पर न जाने क्यों इस वादी में,
ख़ामोशियाँ मेरी गूँजती है।

लब पे ऊँगलियाँ रख दूँ, तो
कई इसे मेरी कमज़ोरी,
कई मेरा मत समझ लेते हैं।
पर क्या करूँ-
न कहता हूँ तो कोई समझता ही नहीं,
कह देता हूँ तो लोग ग़लत समझ लेते हैं।

Sunday, August 28, 2016

ग़ुरूर

Self-Esteem

बस ख़ामोशी ही गूँज रही थी,
वो वादी ही कुछ ऐसी थी।
क्या कहता, क्या बयां करता,
वो बात ही कुछ ऐसी थी।

ये दिल है, कंधा नहीं,
अब और बोझ सह नहीं सकता।
कुछ और पल अब बिन कहे,
मैं रह नहीं सकता।

वो मीत मेरा था,
बेचारा मुश्किल में था रह रहा।
मैंने मदद के लिए हाथ बढ़ाया था,
पर वह समझ बैठा कि मैं हाथ उठा
उसे अलविदा कह रहा।
मुझे लगा कुछ तो ग़लत है,
इक 'ग़लत'फ़हमी ज़रूर है।
पर वो मुँह मोड़कर कहता है,
"देखो! इसे ग़ुरूर है।"

हाँ! हाँ, मुझे ग़ुरूर है!
पर नहीं वो इस शाह-ए-शरीर पर,
जिसे इक दिन ख़ाक़ हो जाना है।
नहीं दौलत-ए-दाय पर,
जिसे फिर यहीं छोड़ जाना है।
नहीं नामो-शोहरत पर,
जो अभी अदना भी नहीं।
नहीं इक ख़्वाब-सी किस्मत पर,
जो कभी मिली ही नहीं।

हाँ, मुझे ग़ुरूर है!
सच तो तुम कभी मानोगे नहीं,
मैं ही हार मानता हूँ।
हाँ, मुझे ग़ुरूर है!
हाँ, मुझे ग़ुरूर है!

बारिश की बूँदें

Rain Drops

ग़ुर्बत की कड़कड़ाती धूप में,
ज्यों हीरे और मोती बरसे।
जैसे होड़ लगी हो नीचे आने की,
ऊपरी कालिमा के डर से।
जैसे किसी ने आसमाँ फ़तह कर,
ख़ुशी के आँसू बहाए हो।
या फिर ऊपर वाले ने ही
कुछ नज़राने बरसाए हो।

आगमन से पहले ही इतनी बुलंदी,
कि डर से छिप गया सूरज बादलों के पीछे।
ढोल बजे, आतिशबाज़ियाँ चलीं,
और सूर्य राज का तख़्तापलट हो गया नीचे।
उधर हल-वाहा की सभी मुश्किलें 'हल' हो गईं,
और माटी के गुलामों के लिए,
बाहर की राह सरल हो गई।

झुर्रियों से भरी ज़मीं की,
अचानक ही जवानी लौट आई।
साथ ही, पेड़-पौधों में भी
इक हरित-क्रांति ले आई।
न जाने ऐसा क्या साथ ले आई
वो बारिश की बूँदे,
कि हर कोई खड़ा है हाथ फैलाए, आँखें मूँदे।
कोई रहमत बरस रही हो
या बख़्शिश की बारिश हो,
ऐसा भी क्या उफान मचा है,
मानो सब पक्की साज़िश हो।

एक मौसम जो खराब था,
एक सनसनाता सन्नाटा जो छाया था।
एक बच्चे की किलकारी जो गूँजी थी,
एक रंगीन लकीर कोई आसमाँ में खींच आया था।
सातों आसमाँ इक-इक रंग ले गए,
मानो बाण चला इंद्र-
धनुष छोड़ चले गए।

मुस्कान

Smile

माथे पर तेरे जब शिकन आती है,
तेरे दुश्मनों को वह खूब भाती है।
पर तेरे दुश्मनों की हिम्मत का होता है अपमान,
जब तेरे चेहरे पर आती है मुस्कान।

दिल जब तेरा दहलता है,
तेरे दुश्मनों का ख़ात्मा टलता है।
पर उन दुश्मनों का नहीं रहता है नामो-निशान,
जब तेरे चेहरे पर आती है मुस्कान।

हाँ! होश जब तेरे उड़ जाते है,
दुश्मन तेरे जीत की ओर मुड़ जाते हैं।
पर वही दुश्मन कर देते हैं अपनी हार का ऐलान,
जब तेरे चेहरे पर आती है मुस्कान।

जानता है, मानता है तू,
दुखों का यह डगर है,
मुश्किल तेरा यह सफर है।
पर यह सफर हो जाता है आसान,
जब तेरे चेहरे पर आती है मुस्कान।

Sunday, July 3, 2016

समय की समझदारी

Puzzle Man

उम्र की सीढ़ियों में खुद को
थोड़ा और ऊपर चढ़ा के,
अनुभव के थैले का बोझ
थोड़ा और बढ़ा के।
हम आगे की ओर मुख किए,
पीछे की ओर बढ़ाते जा रहे हैं कदम।
आगे-आगे कहते हुए,
पीछे-पीछे बढ़ते जा रहे हैं हम।
जीवन पथ के इस मोड़ पर
हम दिशा-ज्ञान से क्यों खो गए,
आख़िर हम इतने समझदार क्यों हो गए?

एक धोखा खाकर हमने,
सारे रिश्ते तोड़ दिए।
एक बार क्या हार हुई,
हमने प्रयास करने ही छोड़ दिए।
बदतमीज़ी, बदसलूकी सीखकर
हमने ज़माने में ख़ुद को ढाला।
और ज़माने ने भी ऐसा धोखा दिया
कि ख़ुद तलाश में पड़ गया वो मदद करने वाला।
अनुभव के थैले को कंधे पर डालने के बाद
जिम्मेदारियों के बोरे कंधे से क्यों खो गए,
आख़िर हम इतने समझदार क्यों हो गए?

लाख गुणा बेहतर था वो वक़्त
जब हमने दुनिया नहीं देखी थी।
जब कर्म के घटे में
न पाप था, न नेकी थी।
पर एक विश्वास था उस वक़्त,
एक भरोसा था सब पर।
एक सपना था सुख बाँटने का,
जो सदा रहता था तत्पर।
जीवन के नाटक में
हम उस किरदार से क्यों खो गए,
आख़िर हम इतने समझदार क्यों हो गए?

सच है, वो वक़्त, वो ज़माना,
अब चल गया है।
आज इंसान और उसके रहने-कहने
का अंदाज़ भी बदल गया है।
इतना बदल गया है,
कि हर कोई इस सोच में खो गया।
न जाने कैसे इमानदार बेवकूफ,
और चालाक समझदार हो गया!
ज़माना तो ठीक है,
पर हम उस पक्के ज़बान से क्यों खो गए,
आख़िर हम इतने समझदार क्यों हो गए??

Friday, June 10, 2016

वक़्त बदल गया है।

Changing Time

वक़्त की उस रेत में,
शायद हम भूल गए छोड़ने निशान,
सो, आज अपनी ही दुनिया में
भटक गए हैं हम इंसान।
अपनी ख़्वाहिश, अपनी सोच, अपने लक्ष्य से भटक गए हैं,
सच कहूँ तो आज हम सच से ही भटक गए हैं।
शत-प्रतिशत बेहतर था वो जो कल गया है,
क्योंकि आज तो वक़्त बदल गया है।

ज़लज़ला ज़ुल्म का आया है,
अत्याचार की आँधी आई है।
बेकाबू, बेलगाम
हो गए हैं कुछ हैवान।

वक़्त के साथ हम भी बदल गए हैं।
ज़्यादा-ज़्यादा के चक्कर में,
अपनी ज़िन्दगी ही हमने कर ली है कम।
पास से दूर जा, न जाने कौन से दूर को
पास ला रहे हैं हम।
गलती तो हमसे हुई है,
पर मानने को तैयार ही नहीं।
सच कहता हूँ,
शत-प्रतिशत बेहतर था वो जो कल गया है,
क्योंकि आज तो वक़्त बदल गया है।

कभी सुबह-शाम आसमान लाल होता था,
आज ज़मीन लाल होती है।
कभी सत्यमेव जयते होता था,
आज झूठ की जय-जयकार पूरे साल होती है।
कभी इंसान दिल की सुनता था,
आज तो सुनता ही नहीं।
कभी इंसान ख़्वाब का पीछा करता था,
आज तो सपने बुनता ही नहीं।

शायद, ख़ुदा की बनाई वो दुनिया
हमें नहीं आई थी पसंद।
सो, अपनी बनाई दुनिया में हमने
ख़ुद को कर लिया बंद।
गलती तो हमसे हुई है,
पर माफी माँगने को तैयार ही नहीं।
सच कहता हूँ,
शत-प्रतिशत बेहतर था वो जो कल गया है,
क्योंकि आज तो वक़्त बदल गया है।

घड़ी वही है, काँटे वही है,
सुइयाँ उसी तरह घूम रही।
पर सच कहता हूँ,
वक़्त बदल गया है।

Sunday, March 13, 2016

मेरी कक्षाएँ


मेरी कक्षा VIII D
VIII D

ख़त्म हो रही है अब आठवीं कक्षा,
न जाने कौन करेगा अब हमारी रक्षा।
सिर-आँखों पर चढ़ चुका अब exam है,
इसलिए मौज-मस्ती का चक्का अभी जाम है।

Datesheet देखके,
तो जैसे उड़ गए है होश Abhishek के।
Akshay का leakage जारी है,
दूसरी ओर Ish की लाजवाब चित्रकारी है।
कैसे खत्म हुआ Suryansh-Abhinav का water-war,
Shyan ने कैसे चलाई 150 की speed पर car।
आख़िरी दिनों में monitorगीरी कर रहा Ashish है,
वहीं अपने acting के कीड़े को जगा रहा Devashish है।

ख़त्म हो रही है अब आठवीं कक्षा,
न जाने कौन करेगा अब हमारी रक्षा।
सिर-आँखों पर चढ़ चुका अब exam है,
पर Professor Divyansh को अब भी सूझ रहा आराम है।
जारी है बाबा Biruly का मौन,
Yash का hero Satbir आख़िर है तो है कौन?
दो रूपए में Shubham के कितने बाल कट गए?
Kabaddi के चलते class में न जाने कितने pant फट गए!
Parthiv का self-study बना Joke of the Year,
Wakas का भी अब जाग गया है fear।

ख़त्म हो रही है अब आठवीं कक्षा,
न जाने कौन करेगा अब हमारी रक्षा।
सिर-आँखों पर चढ़ चुका अब exam है,
पर Ankur की कोशिशें अब भी हो रहीं नाकाम है।
जीता quiz Meet ने,
पर maths complete कैसे किया Amarjeet ने।
Aniket को किसने दिया Right-to-Fight,
Class से अचानक कैसे गायब हो गए
दोनों के दोनों light।
ख़ैर, Ayush अब सुधरने लगा है
और रहने लगा है शांत भी,
कहने को तो सुधर रहा है अब अपना Bikrant भी।

ख़त्म हो रही है अब आठवीं कक्षा,
न जाने कौन करेगा अब हमारी रक्षा।
सिर-आँखों पर चढ़ चुका अब exam है,
पर Bajrang के लिए ये वही मामूली शाम है।
दोनों Vijay का क्यों है height कम,
तोड़-फोड़ में क्यों लगे है दोनों Shivam।
एक Pratik की लालूगीरी जारी है,
वहीं दूसरे पर Pro Kabaddi का fever भारी है।
एक Vivek की आवाज़ न्यारी,
वहीं दूसरा कर रहा Bajrang से यारी।

ख़त्म हो रही है अब आठवीं कक्षा,
न जाने कौन करेगा अब हमारी रक्षा।
सिर-आँखों पर चढ़ चुका अब exam है,
पर Shresth अब भी 150 रूपए में कर रहा काम है।
Cameraman के साथ news-reporter Saurav Pati,
पहुँच जाता वहाँ, जहाँ घटना घटी।
उधर, Mrinal happy-dent से चमका रहा है अपने दाँत,
शांत रहने वाला Tanish भी अब करने लगा है बात।
Famous हो गया है Raghav का बाल,
Prithvi साफ करने लगा है मकड़ी का जाल।

ख़त्म हो रही है अब आठवीं कक्षा,
न जाने कौन करेगा अब हमारी रक्षा।
सिर-आँखों पर चढ़ चुका अब exam है,
इसलिए मौज-मस्ती का चक्का अभी तो जाम है।
याद रखो, पहाड़ कितनी भी ऊँची हो,
तुम बस अपनी चढ़ाई करो।
बैठे-बैठे poem क्या सुन रहे हो,
'book खोलो और पढ़ाई करो!'


मेरी कक्षा VII D

VII D
VII Class के ये अंतिम दिन,
बीत रहे मौज-मस्ती के बिन।
पूरे साल रहा बदमाशी का जोश,
पर अब exams की डर से सब है खामोश।

खबर सुनते ही जैसे सिर पर रखकर बोरा,
पढ़ने लगा है Abhishek Godsora।
Amarjeet को हुआ double नुकसान,
Anish बन गया और भी नादान।
Bajrang Subhojeet sir से डर गया है,
Ayush भी अब सुधर गया है।

VII Class के ये अंतिम दिन,
बीत रहे मौज-मस्ती के बिन।
कुछ लम्हें दूर तो कुछ पास में है,
समझ नहीं आता कि
हम पृथ्वी में है या Prithvi हमारे class में है।
Prateek ने किया Piggy Bank दान,
साल भर Nails Check 
करता रहा Devashish Pradhan।
Harsh के खड़े होने पर लग गया ban,
Vivek की आवाज़ का पूरा class fan।

VII Class के ये अंतिम दिन,
लड़कर बीता रही Nawrin।
Barsha धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ रही है,
Vanshika और Nandini की दोस्ती बढ़ रही है।
Leesa के गाने है लाजवाब,
Yashmati और Kajal की तेज़-तर्रारी का क्या जवाब।
Anushka Ishika WhatsApp के friend,
करते notes भी उसी से send।
Sakshi और Tisha बन गई सहेली,
कौन सुलझाए Khushi की नाखुशी की पहेली।

VII Class के ये अंतिम दिन
में सुधर रहा Wakas Amin।
Bony ने नहीं सुनाए अपने बोल,
Manav ने सिखाए मानवता के मोल।
Tushar तो अभी नया-नया है,
Rohit को न जाने क्या हो गया है?
Shashank साल भर रोता रहा,
Divyansh class के बीच में सोता रहा।
Art में Ish की हुई जीत,
CFL बाबा बन गया Meet।

VII Class के ये अंतिम दिन,
बीत रहे मौज-मस्ती के बिन।
पूरे साल रहा बदमाशी का जोश,
पर अब exams की डर से सब है खामोश।
ख़ैर यह तो थी बात पुरानी,
ये तो थी पुरानी कहानी।
मज़े लो सुबह की, फ़िक्र न कर शाम की।
जल्दी से book खोलो,
'और तैयारी करो exam की !'

मेरी कक्षा VI C

VI C
VI Class पार हो रहा है,
सब कुछ अभी तैयार हो रहा है।
सब कुछ नया हो जाएगा,
न जाने इस साल क्या खो जाएगा।
Final exams भी पास है,
इसलिए class का माहौल अभी बकवास है।

Datesheet देखके,
उड़ गए है होश Abhishek के।
लेकर अपने नए-नए सवाल,
तैयार हो गया है Adarsh Agarwal।
भर गए है मज़ाक-मस्ती के पेट,
पर अब तक ready नहीं है Aniket।
अपनी आवाज़ बदलकर,
बन गया है Ankur लता मंगेशकर।
जल रही है अब भी बदले की आग,
लेकिन न जाने क्या कर रहा है Anurag।

VI Class पार हो रहा है,
Dev और Divyansh में लड़ाई बार-बार हो रहा है।
Shivam और Bhavya की यारी,
में आ गई है दरारी।
Boiler मछली बन चुका Neeraj,
धीरे-धीरे खो रहा है अपना धैर्य और धीरज।
सोचते-सोचते थक गए हम यह
कि आख़िर Parthiv Banerjee,
को किससे है allergy।
Rishabh ने बालों में किया spike,
पर उसके hair-style को teachers ने किया unlike।

VI Class पार हो रहा है,
Class का माहौल बेकार हो रहा है।
Exams भी पास है,
सब को अच्छे marks की आस है।
ये तो पता नहीं कि कौन होगा first और कौन last,
पर Heaven, Nikhil और Mayank हो गए है बहुत fast।
आख़िर क्या है Shyan का Power,
Shekhar तो बन गया है tower।
Yash ने कर दिया teachers का ही complaint,
पहले साथ देकर सबने फिर उसी को कर दिया blame।
Class में कभी ज़्यादा तो कभी कम पड़ गए seat,
फिर भी हर चीज़ से बेफ़िक्र है Meet।

VI Class पार हो रहा है,
सब कुछ अभी तैयार हो रहा है।
सब कुछ नया हो जाएगा,
न जाने इस साल क्या खो जाएगा।

Saturday, January 30, 2016

आज की दुनिया

Today's World

रिश्तों की कोई क़दर नहीं,
अपराध के बिन कोई गाँव या शहर नहीं।
क्रूरता से भरी पड़ी है दुनिया आज,
आज की दुनिया में इंसानियत क्या है!

पैसा है तो सबकुछ है,
पैसा नहीं तो कुछ भी नहीं।
पैसा ही तो हूनर है आज,
आज की दुनिया में क़ाबिलियत क्या है!

बचपन से ही बच्चों पर परिपक्वता का ज़ोर है,
दिलो-दिमाग में उनके आशाओं का शोर है।
भोलापन तो जैसे गुम होता जा रहा है आज,
आज की दुनिया में मासूमियत क्या है!

अंदर कुछ और बाहर कुछ,
आदमी भी मानो तरबूज़ हो गया है,
इसलिए रिश्तों का धागा भी अब लूज़ हो गया है।
हो गई है झूठी आत्मा भी आज,
आज की दुनिया में रूहानियत क्या है!
आज की दुनिया में इंसानियत क्या है!

Monday, January 25, 2016

मजदूरी

Labour

जिस कूली ने तेरा सामान उठाया,
जिस मिस्त्री ने बनाया तेरा घर।
सोच क्या होता, क्या होता
न होता वो अगर।

भगवान ने ये कैसा अन्याय है किया,
कैसा उसने ये खेल है खेला।
जो कुर्सी पे बैठा वो बाॅस,
जिसने दिन भर पसीना बहाया वो चेला।

ख़ैर, अब कौन उठाए दुनिया का बोझ,
कौन खींचे भारी रिक्शा।
ये मजदूरी तो उनकी मजबूरी है,
जिन्हें नहीं मिली अच्छी शिक्षा।

अब कौन करे ऐसा काम, कौन सहे अपमान,
पर अब हमें निकालना होगा इस समस्या का समाधान।
तभी कम होगा मजदूरों का ग़म,
जब इज़्ज़त की निगाहों से उन्हें देखेंगे हम।

Sunday, January 24, 2016

आज का गाँधी

Gandhi

उसने हमें कराया था आज़ाद,
लगभग दो सौ वर्ष बाद।
आज भी जब आती है उनकी याद,
तो याद आती है उनकी मुराद।
'आज के इंडिया को भारत बनाना है,
 उसे अपना गौरव वापस दिलाना है।'
उनमें तो ख़ैर इतनी शान थी,
पर क्या कोई आज बन पाएगा 'गाँधी'।

हो रहा है अत्याचार, हो रहा है भ्रष्टाचार,
क्यों नहीं रोक पा रही इसे हमारी सरकार।
क्यों नहीं रोक पाती यह इस भेद-भाव को,
क्यों नहीं रोक पाती यह इस दुखों के नाव को।
माँग है यह भारत माता की
पर समझ यह नहीं आता कि
उनमें तो ख़ैर इतनी शान थी,
पर क्या कोई आज बन पाएगा 'गाँधी'।

क्या कोई है जो सह सके इतना कष्ट,
क्या कोई है इतना बड़ा वतन-परस्त।
जिसके रगों में दौड़ता हो खून वतन का,
जो तैयार हो देने को बलिदान तन-मन का।
हमारा मुल्क आज यह हमसे माँग रहा है,
उसने तुमसे भी आज यह कहा है,
उनमें तो ख़ैर इतनी शान थी,
पर क्या तुम बन पाओगे आज के 'गाँधी'।

आज़ादी की नीलामी

Colors of Indian Heritage
भारत को अब हम गुलाम नहीं होने देंगे,
चाहे कुछ भी हो जाए,
अपनी आज़ादी को नीलाम नहीं होने देंगे।

सुख के दिनों में शाम नहीं होने देंगे,
अपने इरादों को नाकाम नहीं होने देंगे,
जब तक हम जीत न जाए
आराम नहीं होने देंगे।
आराम नहीं होने देंगे।

बुराइयों का आगाज़ नहीं होने देंगे,
अनेकता का अहसास नहीं होने देंगे,
मिटा देंगे सारे भेद-भाव को
कहीं भी इम्तियाज़ नहीं होने देंगे।
कहीं भी इम्तियाज़ नहीं होने देंगे।

अपने हूनर को बेकार नहीं होने देंगे,
देश में ज़ुल्म या अत्याचार नहीं होने देंगे,
बस बहुत हो गया
अब और इंतज़ार नहीं होने देंगे।
अब और इंतज़ार नहीं होने देंगे।


भारत को अब हम गुलाम नहीं होने देंगे,
चाहे कुछ भी हो जाए,
अपनी आज़ादी को नीलाम नहीं होने देंगे।

Tuesday, January 5, 2016

अतिथि तुम कब जाओगे

Please Go Now

अतिथि तुम कब जाओगे ?
कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे ?

तुम्हारे आए हुए एक सप्ताह होने जा रहा है,
माना कि यह घर तुम्हे बहुत भा रहा है,
दूसरों का घर सबको पसंद आता है,
पर वह दूसरे दिन वापस चला जाता है।
पर तुम हो कि मानते नहीं,
क्या तुम यह बात जानते नहीं,
'हाथ फैलाया हुआ इंसान बुरा लगता है,
एक रात गुज़ार ले, तो मेहमान बुरा लगता है।'

अतिथि तुम कब जाओगे ?
कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे ?

रोज़ तुम्हें दिखाकर बदल रहा हूँ तारीखें,
चूँकि तुम्हारे एक-एक मीठे पल लग रहे हैं मुझे तीखे।
जिस दिन तुम आए थे, मैं तो हिल गया था,
फिर भी मुस्कुराते हुए तुमसे गले मिला था।
यह सोचकर हमने तुम्हे शानदार लंच और डिनर करवाया था,
कि तुमने अगले दिन का टिकट कटवाया था।
पर हमें क्या पता था कि तुम अपने 'स्वीट होम' नहीं जाओगे,
और हमारे घर में पूरा एक सप्ताह बीताओगे।

अतिथि तुम कब जाओगे ?
कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे ?

माना कि तुम देवता हो,
पर मैं भी तो हूँ इंसान,
मेरे भी तो है कुछ फ़रमान।
कभी-कभी मुझे यह लगता है,
कि 'गेट-आउट' भी एक शब्द है,
जो तुम्हे कहा जा सकता है।
क्यों नहीं करते तुम अपने बिस्तर को गोल,
और देते हमको यह बोल,
जा रहा हूँ मैं अपने घर,
अब और मेहमाननवाज़ी तू न कर।

अतिथि तुम कब जाओगे ?
कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे ?

Monday, January 4, 2016

जीवन पथ-प्रदर्शक

Choosing the path

मुसलसल मसलें आते रहेंगे,
तुझे धैर्य रखना होगा।
समझ ले, तेरी किस्मत में नहीं कुछ है लिखा,
तुझे मशक्कत करना होगा।

याद रख, ये जंग-ए-ज़िन्दगी है,
जद्दोजहद तो करना ही पड़ेगा।
कामयाबी मिले न मिले,
पूरा प्रयास तो करना ही पड़ेगा।

माना कि मंज़िल ऊँची है तेरी,
तुझे सीढ़ियाँ हज़ारों चढ़ना है।
पर तक़दीर के कलम से,
तुझे इतिहास भी तो गढ़ना है।

तेरे पीछे समंदर यादों का,
आगे मुसीबतों का पहाड़।
छोड़ सारी चिंताओं को,
शेर-दिल होकर तू दहाड़।

भूल न करना ये बातें भूलने की,
वरना किसी मोड़ पर तू छूट जाएगा।
कुचलकर तुझे बढ़ जाएँगे लोग आगे,
फिर न कभी तू दुबारा उठ पाएगा।

मुसलसल मसलें आते रहेंगे,
तुझे धैर्य रखना होगा।
समझ ले, तेरी किस्मत में नहीं कुछ है लिखा,
तुझे मशक्कत करना होगा।

तक़दीर


Lines of fate

'हथेलियों में देखता रहा किस्मत,
पर कभी कोई लकीर-ए-खुशी न दिखी।
उस कलम का मैं सिर कलम कर दूँ,
जिसने मेरी तक़दीर लिखी।'

जब हाथों की लकीरों में ज़िन्दगी तू ढूँढता है,
तो ख़ुद की किस्मत देख ऐसा क्यों सोचता है।
जब तेरे हाथ में तेरी किस्मत है,
तो तक़दीर को तू क्यों कोसता है।

ख़्वाबों की मजलिस में क्यों बैठा है,
उम्मीदों के महफ़िल में क्यों ठहरा है।
समझ ले, तेरी किस्मत में नहीं कुछ है लिखा,
तू उठ और उठ कर कुछ कर के दिखा।

उठ और उठा कलम तक़दीर की,
पलट किस्मत के पन्ने, मिलेगा एक खाली पन्ना।
लिख डाल खुद की तक़दीर उसमें,
पूरी कर अपनी बरसों की तमन्ना।

Sunday, January 3, 2016

गणतंत्र रो रहा है

Happy Republic Day

देखो भारत, देखो भारतवासियों,
तुम्हारा गणतंत्र रो रहा है,
तुम्हारा गणतंत्र रो रहा है।
न जाने क्या ये सोच रहा है,
बताने में क्यों कर संकोच रहा है।

आख़िर क्यों इसके आँखों से आँसू गिर रहे है,
आख़िर क्यों दुख-दर्द इसके दामन में घूम-फिर रहे है।
ये गणतंत्र, जो पूरे भारत में ख़ुशी के बीज बो रहा है,
वो आज ख़ुद क्यों रो रहा है,
ख़ुद क्यों रो रहा है।

सच कहूँ, तो गणतंत्र आज से नहीं,
67 सालों से रो रहा है।
लाखों कानूनों के बावजूद,
ज़ुल्म और अत्याचार जो हो रहा है।


देखो भारत, देखो भारतवासियों,
तुम्हारा गणतंत्र रो रहा है,
तुम्हारा गणतंत्र रो रहा है।
बहलाओ इसे, फुसलाओ इसे,
किसी तरह तो समझाओ इसे,
क्योंकि कहीं ये गणतंत्र रूठ गया,
तो समझो पूरा भारत लूट गया।

Saturday, January 2, 2016

नया साल

Happy New Year


आज सुबह जब नींद खुली,
पलकें जब अलग हुईं।
तो नज़ारा कुछ बदला बदला-सा था।
साँसों से जब बातें की,
तो इशारा कुछ बदला बदला-सा था।

बच्चों में थी नई चाह,
लोगों में था नया उत्साह।
मुसाफ़िर सुख में ऐसे डूबे थे,
मानो मिल गई हो नई राह।

मैं कमरे में था बंद,
हवाएँ चलती मंद-मंद,
मेरे कानों में कुछ फ़ुसफ़ुसा रही थी,
पर उनकी बात मुझे नहीं समझ आ रही थी।

मैं बेचारा था थोड़ा सहमा, थोड़ा घबराया,
तभी मोबाईल में एक दोस्त का मैसेज आया।
'हर्ष नया है, उत्कर्ष नया है,
अर्श नया है, फ़र्श नया है।
अब तो तुम नए हो जाअो यार,
अब तो भाई ये वर्ष नया है।'
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