कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़िर
वो ख़्वाब भी लेकर आओ ना
जो कसक हो दिल में कैद कहीं
और मन को मेरे बहलाओ ना।
अंधेरों से की है दोस्ती
अब रौशनी से नहीं वास्ता,
तुम चांद सितारे ले जाकर
आसमान को समझाओ ना।
अफवाह उड़ी है कि दर्द को
इश्क़ कहने से दर्द नहीं होता,
तुम दर्द और इश्क़ में
फर्क क्या है बतलाओ ना।
Wunderbar
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