पर कभी कोई लकीर-ए-खुशी न दिखी।
उस कलम का मैं सिर कलम कर दूँ,
जिसने मेरी तक़दीर लिखी।'
जब हाथों की लकीरों में ज़िन्दगी तू ढूँढता है,
तो ख़ुद की किस्मत देख ऐसा क्यों सोचता है।
जब तेरे हाथ में तेरी किस्मत है,
तो तक़दीर को तू क्यों कोसता है।
ख़्वाबों की मजलिस में क्यों बैठा है,
उम्मीदों के महफ़िल में क्यों ठहरा है।
तू उठ और उठ कर कुछ कर के दिखा।
उठ और उठा कलम तक़दीर की,
पलट किस्मत के पन्ने, मिलेगा एक खाली पन्ना।
लिख डाल खुद की तक़दीर उसमें,
पूरी कर अपनी बरसों की तमन्ना।
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