जिस कूली ने तेरा सामान उठाया,
जिस मिस्त्री ने बनाया तेरा घर।
सोच क्या होता, क्या होता
न होता वो अगर।
भगवान ने ये कैसा अन्याय है किया,
कैसा उसने ये खेल है खेला।
जो कुर्सी पे बैठा वो बाॅस,
जिसने दिन भर पसीना बहाया वो चेला।
ख़ैर, अब कौन उठाए दुनिया का बोझ,
कौन खींचे भारी रिक्शा।
ये मजदूरी तो उनकी मजबूरी है,
जिन्हें नहीं मिली अच्छी शिक्षा।
अब कौन करे ऐसा काम, कौन सहे अपमान,
पर अब हमें निकालना होगा इस समस्या का समाधान।
तभी कम होगा मजदूरों का ग़म,
जब इज़्ज़त की निगाहों से उन्हें देखेंगे हम।
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