तुम्हारा गणतंत्र रो रहा है,
तुम्हारा गणतंत्र रो रहा है।
न जाने क्या ये सोच रहा है,
बताने में क्यों कर संकोच रहा है।
आख़िर क्यों इसके आँखों से आँसू गिर रहे है,
आख़िर क्यों दुख-दर्द इसके दामन में घूम-फिर रहे है।
ये गणतंत्र, जो पूरे भारत में ख़ुशी के बीज बो रहा है,
वो आज ख़ुद क्यों रो रहा है,
ख़ुद क्यों रो रहा है।
सच कहूँ, तो गणतंत्र आज से नहीं,
67 सालों से रो रहा है।
लाखों कानूनों के बावजूद,
ज़ुल्म और अत्याचार जो हो रहा है।
देखो भारत, देखो भारतवासियों,
तुम्हारा गणतंत्र रो रहा है,
तुम्हारा गणतंत्र रो रहा है।
बहलाओ इसे, फुसलाओ इसे,
किसी तरह तो समझाओ इसे,
क्योंकि कहीं ये गणतंत्र रूठ गया,
तो समझो पूरा भारत लूट गया।
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